Tuesday 21 July 2015

‘राष्ट्रीय उजाला’ एक्सक्लूसिवः प्राधिकरण के खेल में उलझे किसान-बिल्डर

धरने पर बैठे किसान, प्रशासन की बात सुनने को नहीं तैयार
बिल्डर का दावा, जांच-पड़ताल के बाद प्राधिकरण से खरीदी थी भूमि
प्राधिकरण व प्रशासन के लिए सिरदर्द बने किसान।
प्रोजेक्ट तैयार है पर किसान नहीं लेने दे रहे निवेशकों को पजेशन
बिल्डर ग्रुप न्यायालय के आदेश को दे रहा अहमियत
निवेशकों से भयभीत न होने की अपील की।
-क्या है मामला-
भूमि अधिग्रहण के पुराने मामले में फंसा पेंच। निर्माण स्थल की जमीन को किसानों ने बताया अपनी। वहीं प्राधिकरण ने बताई बिल्डर की जमीन। अथारिटी के खेल में उलझे किसान और बिल्डर। भूमि की पैमाइश करने पर अड़े। अधिकारियों ने मानी मांग। मामले की सात अगस्त को होगी सुनवाई।
अश्वनी श्रीवास्तव
नोएडा। भारी संख्या में पुलिस बल, छावनी में तब्दील सिविटेक सोसायटी और गेट पर धरने पर बैठे सोरखा गांव के किसान। ऐसा ही कुछ नजारा है सेक्टर 77 स्थिति सिविटेक सोसायटी का। मामला भूमि अधिग्रहण का है। किसान बता रहे हैं कि जमीन हमारी है, जबकि आधिकारिक तौर पर यदि माने तो बिल्डर ने यह भूमि नोएडा प्राधिकरण से बिड के माध्यम से खरीदी थी। जो एक आधिकारिक तरीका होता है किसी भी प्रॉपर्टी को खरीदने का। बिल्डर का प्रोजेक्ट लगभग तैयार है। लोग भी आकर रहने शुरु हो गए हैं। ऐसे में अगर कोई विवाद उत्पन्न होता है, तो इसमें नुकसान किसी भी स्थिति में बिल्डर का ही होगा। शहर का प्रशासनिक अमला किसानों को समझाने का प्रयास कर रहा है, लेकिन माहौल ऐसा है कि कोई कुछ समझने को ही राजी नहीं। मंगलवार को किसानों को समझाने पहुंचे नोएडा प्राधिकरण के तहसीलदार और पुलिस अधिकारियों द्वारा लाख समझाने के बाद किसान इस बात पर माने कि जमीन की पुन: पैमाइश की जाए और यदि भूमि बिल्डर की भूमि के दायरे में आती है, तो उसे तत्काल प्रभाव से सीज किया जाए और वह भूमि किसानों को दी जाए। किसानों की इस मांग पर प्रशासन की सहमति तो बन गई, लेकिन किसानों का कहना है कि वह गेट से तभी हटेंगे जब फैसला कागजों पर हो जाएगा, जबकि एक आरटीआई(14612) के जवाब में प्राधिकरण ने यह स्पष्ट किया है कि किसान की भूमि सिविटेक बिल्डर्स की लैंड में न होकर हरित पट्टी में है। गगनचुुंबी इमारतों से गुलजार नोएडा का सेक्टर-77 इन दिनों विवादों का केंद्र बना हुआ है। कारण किसानों द्वारा बिल्डर की साइट के कुछ हिस्से को अपनी भूमि बताना है। किसान अपनी बात पर अड़े हैं। प्रशासन हर मुमकिन कोशिश करके हार चुका है, लेकिन किसान धरने समाप्त करने को राजी ही नहीं है। किसान हाई कोर्ट के आदेश का हवाला दे रहे हैं, जबकि बिल्डर की माने तो न्यायालय ने उनकी तरफ से मसले पर रिकॉल प्रीटिशन (रिकॉल प्रीटिशन उस स्थिति में स्वीकार की जाती है, जब मामले में कोई तथ्य न्यायालय द्वारा छूट जाता है।) स्वीकार कर लिया है। बिल्डर ग्रुप की माने तो वह न्यायालय का फैसला जो भी आएगा उसे सर्व सम्मति से मानने को तैयार है, जबकि किसानों के विरोध में प्राधिकरण ने भी अदालत में एक एसपीएल दायर की हुई है। जिस पर बहस आगामी सात अगस्त को होना नियत है। प्राधिकरण अधिकारी भी न्यायालय के ही फैसले पर बल दे रहे हैं। ऐसे में किसानों की मनमानी से न सिर्फ वहां रहने वाले परिवार, बल्कि बिल्डर गु्रप को भी इसका खामियाजा उठाना पड़ रहा है।
-क्या है पूरा मामला-
नोएडा के सेक्टर-77 में सिविटेक बिल्डर का संपरिती नाम से एक प्रोजेक्ट लगभग तैयार स्थिति में है। किसानों की माने तो उसमें लोग भी आकर रहने लगे है। सोरखा गांव के देवी सिंह का आरोप है कि इस बिल्डर सोसायटी की खसरा संख्या 103/1 में 2503 मीटर जमीन उनकी है, जबकि न्यायालय के आदेश व प्राधिकरण की माने तो पूरी भूमि यानि 2503 मीटर के 1/5 वें हिससे के दावेदार हैं देवी सिंह। प्राधिकरण तो यहां तक कहता है कि देवी सिंह की भूमि सिविटेक के प्रोजेक्ट में न होकर वहीं पास में स्थिति ग्रीन बेल्ट में है। बिल्डर की माने तो किसान जिस न्यायालय के आदेश को आधार बना भूमि को अपना बता रहे हैं। मामले में कोर्ट ने उसे कोई नोटिस नहीं भेजा बल्कि जो भी उत्तर देने को कहा गया है। प्राधिकरण को ही लिखित आदेशों में तलब किया गया है। बिल्डर की माने तो मामले में उसकी जवाबदारी नहीं बनती है। यदि कोर्ट बिल्डर से कोई लिखित संवाद करती है, तो वह न्यायालय को इसका संज्ञान पूर्ण तथ्यों के साथ अवश्य देता। जिससे आज ऐसी स्थिति न उत्पन्न होती। वहीं मामले पर प्रशासन के चक्कर काटते-काटते थक चुके किसानों ने स्थानीय प्रशासन के आला अधिकारियों के खिलाफ न्यायालय में दूसरी रिट न्यायालय के आदेशों की अवहेलना की भी डाल दी है। किसान यह भी आरोप लगाते हैं कि आस-पास बनी कई बिल्डर सोसायटियों में भी बिल्डरों ने किसानों की जमीन प्राधिकरण की मिलीभगत से जबरन कब्जा रखी है।
-क्या कहते हैं किसान-
किसानों की माने तो प्राधिकरण अधिकारी अक्सर बिडिंग के समय बिल्डरों से पैसा लेकर उन्हें धोखे से किसानों की वह जमीन भी दे देते हैं, जिसका हक असल में किसान के पास है। वह यह भी कहते हैं कि प्राधिकरण अधिकारी इससे पैसा तो कमा लेता हैं, लेकिन बिल्डर और किसान जीवन भर न्यायालय के चक्कर काटते रहते हैं। ऐसा ही सिविटेक के सेक्टर 77 स्थ्तिि संपरिती प्रोजेक्ट में भी हुआ है। देवी सिंह आरोप लगाते हुए यह मांग कर रहे हैं कि बिल्डर ने उनकी जमीन हड़प ली। उनको गांव के ही अन्य किसानों का समर्थन भी मिला है। देवी कहना है कि जब तक प्रशासन उन्हें उनकी जमीन नहीं दे देता तब तक वह बिल्डर साइट से नहीं हटेंगे।
-क्या कहता है प्राधिकरण-
नोएडा प्राधिकरण के तहसीलदार संजय मिश्रा का कहना है कि बिल्डर प्रोजेक्ट में कहीं भी किसानों की जमीन नहीं है यह साफ कर दिया गया है। यदि फिर भी किसानों को संतुष्टि नहीं है, तो हम पुन: भूमि की पैमाइश किसानों के अनुरूप कराने को तैयार है, लेकिन इसके लिए उन्होंने मौके पर पहुंच किसानों से बिल्डर साइट से धरना खत्म करने की भी अपील की है। लाख कोशिशों के बाद भी किसान मौके से हटने को तैयार ही नहीं है। मिश्रा यह भी बताते हैं कि जब किसानों ने न्यायालय का सहारा अपनी इस लड़ाई के लिए लिया है, तो वह स्वंय क्यों कानून को अपने हाथ में ले रहे हैं। न्यायालय के फैसले का इंतजार करें। यदि इसमें कहीं भी उनका हक होगा तो उन्हें दिया जाएगा। प्राधिकरण ने मामले पर कोर्ट में एसपीएल डाल रखी है जिसपर सुनवाई आगामी सात अगस्त को है। प्राधिकरण की गलती का खामियाजा भुगत रहे बिल्डर गु्रप के लिए किसान एक बड़ी समस्या बन उनके प्रोजेक्ट पर बैठे हुए है। बिल्डर की माने तो आरोप निराधार है, लेकिन हम फिर भी अपने निवेशकों से अपील करते हैं कि उन्हें भयभीत होने की जरूरत नहीं है। हम आखिरी हद तक लड़ेंगे और जीत हमारी ही होगी। हमने भूमि का एक-एक इंच जांच कर खरीदा है। हमें न्यायालय अनदेखा नहीं कर सकती है। फैसला तो कोर्ट सुनाएगी पर सवाल यही खड़ा होता है कि क्या प्राधिकरण अधिकारी किसी भी बिडिंग से पहले भूमि की पूरी पड़ताल नहीं करते। जिससे ऐसे हालात उत्पन्न होते हैं।
-क्या कहता है बिल्डर ग्रुप-
सिविटेक बिल्डर गु्रप के एजीएम डीएस राणा की माने तो यह भूमि उन्होंने प्राधिकरण बिडिंग में ली थी। जब उन्होंने भूमि खरीदी थी उस समय गहनता से सारे पेपर चेक किए थे। रिकॉर्ड मेंं कहीं भी देवी सिंह का नाम नहीं था। राणा कहते हैं कि यदि किसानों को कोई आपत्ति है, तो वह आधिकारिक तौर पर प्राधिकरण से जा कर लड़े। हमने तो उनकी ही तरह जमीन प्राधिकरण से ही ली है। किसान हमसे ऐसे क्यों पेश आ रहे हैं। राणा ने बातचीत के दौरान यह भी बताया कि यह तो किसानों का रोज काम हो गया है। जब भी किसी बिल्डर का प्रोजेक्ट तैयार हो जाता है, तो वह रंगदारी मांगने के माफिक उसके द्वार पर ऐसे ही मनमाने तरीके से धरने पर बैठ जाते हैं। राणा कहते है कि हमारे प्रोजेक्ट में एक इंच भूमि भी किसानों की नहीं है। किसी भी निवेशक को डरने की कोई जरूरत नहीं है।

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